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Bichua ki Jad (shani grah ke liye)

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Bichua ki Jad (shani grah ke liye)

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ज्योतिष शास्त्र में बिच्छू घास यानी बिच्छू बूटी की जड़ का काफ़ी महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, बिच्छू बूटी की जड़ में शनि का वास होता है। बिच्छू बूटी की जड़ से बनी अंगूठी पहनने से शनि का प्रभाव कम होता है

Description

  • बिच्छू बिछुआ जड़ (Bichu Jad) Planet Saturn (शनि ग्रह) Bichu Root
  • ज्योतिष शास्त्र में बिच्छू घास यानी बिच्छू बूटी की जड़ का काफ़ी महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, बिच्छू बूटी की जड़ में शनि का वास होता है। बिच्छू बूटी की जड़ से बनी अंगूठी पहनने से शनि का प्रभाव कम होता है।
  • नीलम बहुत महंगा होता है और आम लोगों के लिए इसे खरीदना मुश्किल होता है। ऐसे में, अगर आप शनि देव को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो नीलम की जगह बिच्छू बूटी की जड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है एवं बिच्छू बूटी की जड़ से शनिदोष से बचा जा सकता है।
  • नीलम रत्न की जगह बिच्छू बूटी की जड़ का प्रयोग करके आप निश्चित रूप से शनि ग्रह के दोषों से बच सकते हैं ।
  • बिच्छू बूटी हिमाचल प्रदेश में बहुत होती है । कोमल कांटेदार पत्तों को स्पर्श करने से वृश्चिकदंश जैसी पीड़ा होने लगती है ।इसीलिए इसका नाम बिच्छू बूटी है।
  • बिच्छू बूटी को धारण करने का तरीका – किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार को सुबह पुष्य नक्षत्र में बिच्छू बूटी की जड़ उखाड़कर ले आएं। इस जड़ के टुकड़ों को चांदी के ताबीज में भरकर शनिमंत्र से अभिमंत्रित करें और फिर इसे धारण करें।
  • बिच्छू बूटी की पत्तियों का दरदरा लेप बनाकर अगर सूजे हुए जोड़ों में लगाया जाए, तो जोड़ों के दर्द में कमी होती है।
  • बिच्छू बूटी में एंटी-अस्थमैटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाये जाते हैं।
  • यदि आप की नौकरी में समस्याएं आ रही हैं या फिर आप जोड़ों के दर्द की समस्या से पीड़ित हैं तो इसका कारण आपकी कुंडली में शनि ग्रह का कमजोर होना है। यदि आप शनि ग्रह से संबंधित अनुकूल परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं तो शुभ मुहूर्त में बिच्छू मूल धारण करने से आपका शनि ग्रह मजबूत होगा और साथ ही साथ आपको जोड़ों में दर्द, टांगों एवं दांतो से संबंधित बीमारियों तथा एसिडिटी और वात रोगों से मुक्ति मिलेगी।
  • धारण विधि – शनिवार के दिन जड़ी को सुबह पंचामृत – (कच्चा दूध गाय का, दही, शुद्ध घी, मधु एवं चीनी) से धोने के उपरांत गंगा जल से इस जड़ी को पवित्र करें फिर गंध (चंदन/रोड़ी/कुमकुम), अक्षत (चावल), पुष्प, धूप, दीप एवं नवेद (प्रसाद) से पूजन करें एवम मंगल मंत्र (“ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नमः”) मंत्र का 108 बार जाप कर जड़ी काले रंग के कपड़े में लपेटकर दाहिनी बाजू या कलाई में बाँधें।

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